लालच,धन और सत्ता के खातिर कब कौन दल बदल
जनता के प्रति त्याग की भावना से काम करना नही चाहता..
राजनीति में कब क्या हो जाए और कौन नेता अपना दल बदल कर दूसरे दल में शामिल हो जाएं अब यह एक आम बात हो गई हैं यही नही अपनी पसंद की सीटे न मिलने पर किस दल में जा बैठ जाएं कोई नई बात नही रही हैं! जनता के प्रति त्याग की भावना से काम करना कोई नही चाहता!अब
अवसरवादिता के इस युग में कुर्सी बचाने की खातिर थोक रूप में पार्टियों के सदस्य अपना दल बदल लेते हैं!यह प्रक्रिया किसी सिद्धांत या आस्था के कारण नहीं,बल्कि लालच, धन और सत्ता बचाने की खातिर होती है! हाल ही में कई कई बड़े नेताओं का पलटना इसी का एक उदाहरण है! इस क्रम में आम जनता ठगी जाती है, जिसने किसी पार्टी और उसके उम्मीदवार को किसी सिद्धांत के आधार पर वोट दिया होता है! देश के मतदाता जब तक अपने मताधिकार का महत्त्व नही समझेंगे और जागरूकता का परिचय नहीं देंगे इस प्रकार की राजनीति पल्लवित और पोषित होती रहेगी ! राजनेताओं का जनता के प्रति बढ़ता विश्वासघात लोकतांत्रिक व्यवस्था व लिए शुभ संकेत नहीं है!!