होली के रंगों पर सियासत: रंग बेचना ठीक, मगर खेलना गुनाह?

होली के रंगों पर सियासत: रंग बेचना ठीक, मगर खेलना गुनाह?

होली का त्योहार जहां भाईचारे और उमंग का प्रतीक है, वहीं इस बार एक नया विवाद छिड़ गया है। सवाल उठा है कि "रंग बेचना गुनाह नहीं, लेकिन रंग खेलना गुनाह क्यों?" जो रंग गरीबों की आजीविका का साधन हैं, वही रंग कुछ लोगों की नजर में गुनहगार कैसे बन गए?

होली के मौके पर यह मुद्दा तब गरमाया, जब कुछ समुदायों की ओर से रंग खेलने को लेकर आपत्ति जताई गई। इस पर लोगों ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। एक वर्ग का कहना है, "अगर हिंदू संस्कृति और त्योहारों से दिक्कत है, तो फिर इन त्योहारों से जुड़ी चीजों को बेचना भी बंद कर देना चाहिए। रंग, गुलाल और पिचकारी बेचकर मुनाफा कमाने वालों को यह समझना होगा कि यह केवल व्यापार नहीं, बल्कि हमारी आस्था और संस्कृति का हिस्सा भी है।"

सोशल मीडिया पर भी इस मुद्दे को लेकर चर्चाएं हो रही हैं। कई लोगों का मानना है कि "हिंदू जाग चुका है और अब अपने त्योहारों का अपमान सहन नहीं करेगा। अगर रंगों से परेशानी है, तो फिर यह रंगों का मेला भी बंद कर देना चाहिए।"

इस पूरे घटनाक्रम ने सामाजिक और धार्मिक बहस को जन्म दे दिया है। सवाल यही उठता है कि त्योहारों को राजनीति और नफरत की नजर से देखना कितना सही है? जब एक त्योहार सबको जोड़ता है, तो उसे तोड़ने की कोशिश क्यों?