संपूर्ण जीवन में किए पुण्यों के फल से भी अधिक है पुत्री का कन्यादान : आचार्य राधारमन

संपूर्ण जीवन में किए पुण्यों के फल से भी अधिक है पुत्री का कन्यादान : आचार्य राधारमन

श्रीमद्भागवत कथा 

संवाददाता मनोज कलीना

बिनौली | शिव मंदिर में चल रही श्रीमद्भागवत कथा में कथाव्यास आचार्य राधारमन ने कहा कि श्रीमद्भागवत कथा में श्रीकृष्ण की हर छोटी बड़ी लीला का चित्रांकन किया गया है। जिनके यहां कन्या नही हैं, उनको पुत्री विवाह में कन्यादान का फल मिलता है। अतः पुत्री के बिना ये जीवन व्यर्थ ही माना गया है और जीवन के अनेक पुण्यों का फल पूरे जीवन काल मे उतना नहीँ होता, जितना कि एक पुत्री के विवाह पर पिता को मिलता है |

उन्होंने सुनाया कि, रुक्मणी ने जब देवर्षि नारद के मुख से श्रीकृष्ण के रूप, सौंदर्य एवं गुणों की प्रशंसा सुनी, तो उसने मन ही मन श्रीकृष्ण से विवाह करने का निश्चय किया। रुक्मणी का बड़ा भाई रुक्मी श्रीकृष्ण से शत्रुता रखता था और अपनी बहन का विवाह चेदिनरेश राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल से कराना चाहता था। रुक्मणी को जब इस बात का पता चला तो ,उन्होंने एक ब्राह्मण संदेशवाहक द्वारा श्रीकृष्ण के पास अपना परिणय संदेश भिजवाया। तब श्रीकृष्ण विदर्भ देश की नगरी कुंडीनपुर पहुंचे और वहां बारात लेकर आए शिशुपाल व उसके मित्र राजाओं शाल्व, जरासंध, दंतवक्त्र, विदुरथ और पौंडरक को युद्ध में परास्त कर रुक्मणी का उनकी इच्छा से हरण कर लाए। वे द्वारिकापुरी आ ही रहे थे कि ,उनका मार्ग रुक्मी ने रोक लिया और कृष्ण को युद्ध के लिए ललकारा। तब युद्ध में श्रीकृष्ण व बलराम ने रुक्मी को पराजित करके दंडित किया। श्रीकृष्ण ने द्वारिका में अपने संबंधियों के समक्ष रुक्मणी से विवाह किया।


इस अवसर पर उपेंद्र प्रधान, ग्राम प्रधान रेनू धामा, शोराज सिंह, राजीव गोस्वामी, अशोक धामा, महेश धामा, लीलू चौहान, पीयूष जैन, अनिल मेंबर, प्रदीप शर्मा, सुमन शर्मा, प्रेमलता आदि मौजूद रहे |