व्यक्ति की मानसिकता अव्यवस्थित होते ही संक्लेशता ( कष्ट) की प्राप्ति : विशुद्ध सागर

व्यक्ति की मानसिकता अव्यवस्थित होते ही संक्लेशता ( कष्ट) की प्राप्ति : विशुद्ध सागर

संवाददाता आशीष चंद्रमौली

बडौत।दिगम्बर जैनाचार्य विशुद्ध सागर जी महाराज ने दुख का कारण अज्ञान बताते हुए कहा कि, ज्ञान ही सुख का कारण है जबकि ,अज्ञान ही दुःख है।कहा कि, ज्ञानी क्षण मात्र में विपुल कर्मों का क्षय करता है। ज्ञानी ही तप कर परम शांति को प्राप्त करता है, जबकि अज्ञानी का तप भी व्यर्थ है, क्योंकि अज्ञानी का तप सिद्धि का साधन नहीं है।

ससंघ चातुर्मास कर रहे जैन मुनीश्वर विशुद्ध सागर ने धर्मसभा में अपने प्रवचनों की अमृत वर्षा करते हुए कहा कि,प्रत्येक वनस्पति में औषधीय गुण विद्यमान हैं। यदि हम न जान पायें ,तो यह हमारी भूल है, वस्तु तत्व तो, जो है, सो है। वस्तु का अभाव नहीं होता, वस्तु हमेशा स्व-चतुष्टय में विद्यमान रहती है। वस्तु का मात्र परिवर्तन होता है। वस्तु थी, है और रहेगी।कहा कि, वस्तु व्यवस्था व्यवस्थित है, परन्तु व्यक्ति अपनी मानसिकता को अव्यवस्थित करके संक्लेशता को प्राप्त होता है। हमारे सोचने से कोई कार्य नहीं होता है, जो होना होता है, वही होता है। पुण्य से अधिक और समय से पहले किसी को कुछ नहीं मिलता है। कहा कि,योग्य व्यक्ति को योग्य पद मिल ही जाता है। योग्य व्यक्ति ही योग्य कार्य कर सकता है, अयोग्य व्यक्ति पद प्राप्त करके भी सिद्धि नहीं कर सकता है। कहा कि, शोध के बिना मुक्ति सम्भव नहीं है। आत्मबोध के अभाव में कोई भी जप-तप, साधना कल्याणकारी नहींं हो सकती। 

धर्म सभा का संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, मनोज जैन, अतुल जैन, सुनील जैन, पुनीत जैन, वरदान जैन, विनोद जैन, राकेश सभासद, दिनेश जैन आदि मौजूद रहे।