श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद: इलाहाबाद हाई कोर्ट में हुई सुनवाई, मस्जिद पक्ष ने कहा- समझौते के तहत बरकरार है कब्जा

अगली सुनवाई पर वाद संख्या 18वें पर बहस करेंगी। उन्होंने पूर्व के वादों में आपत्ति दर्ज कराई। कहा कि 1968 में हुए समझौते के तहत शाही ईदगाह मस्जिद पक्ष काबिज है। इसके अलावा 1991 का पूजा स्थल अधिनियम वक्फ और लिमिटेशन एक्ट स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के तहत इन वादों पर सुनवाई नहीं की जा सकती। इन सारे एक्ट से सभी सिविल वाद पोषणीय नहीं हैं।

श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद: इलाहाबाद हाई कोर्ट में हुई सुनवाई, मस्जिद पक्ष ने कहा- समझौते के तहत बरकरार है कब्जा

 प्रयागराज। मथुरा स्थित श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह विवाद मामले में गुरुवार को फिर इलाहाबाद हाई कोर्ट में करीब सवा घंटे सुनवाई हुई। कटरा केशवदेव के नाम दर्ज जमीन से शाही ईदगाह मस्जिद का कब्जा हटाकर भगवान श्रीकृष्ण विराजमान को सौंपने की मांग को लेकर विचाराधीन सिविल वाद पर मस्जिद पक्ष ने सवाल उठाए।

 

मस्जिद पक्ष की ओर से सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता तसनीम अहमदी ने वीडियो कान्फ्रेंसिंग के जरिये अपनी दलीलें रखीं। कहा, समझौते के तहत कब्जा है और वाद पूजा स्थल अधिनियम से बाधित है। उन्होंने सिविल वाद की पोषणीयता पर सवाल खड़े किए। इस बीच सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपना पक्ष रखने के लिए नए अधिवक्ता की नियुक्ति की है। अब अफजद अहमद पैरवी करेंगे। बहस पूरी नहीं हो सकी। अगली सुनवाई 13 मार्च को होगी।

न्यायमूर्ति मयंक जैन की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है। भगवान श्रीकृष्ण विराजमान कटरा केशव देव सहित कुल 18 वादों की एक साथ सुनवाई हो रही है। मजिस्द पक्ष की अधिवक्ता ने वाद संख्या 6, 9, 16 पर अपना पक्ष रखा। उन्होंने अब तक 17 वादों पर अपना पक्ष रखा है।

 

अगली सुनवाई पर वाद संख्या 18वें पर बहस करेंगी। उन्होंने पूर्व के वादों में आपत्ति दर्ज कराई। कहा कि 1968 में हुए समझौते के तहत शाही ईदगाह मस्जिद पक्ष काबिज है। इसके अलावा 1991 का पूजा स्थल अधिनियम, वक्फ और लिमिटेशन एक्ट, स्पेसिफिक रिलीफ एक्ट के तहत इन वादों पर सुनवाई नहीं की जा सकती। इन सारे एक्ट से सभी सिविल वाद पोषणीय नहीं हैं। उन्होंने सिविल वाद संख्या 11, 12 और 14 में वादियों की ओर से वाद की अस्वीकृति पर दाखिल आपत्तियों पर जवाब दाखिल करने के लिए समय की मांग की। कोर्ट ने उन्हें अगली सुनवाई की तिथि तक आपत्ति दाखिल करने का समय दिया।