दलबदलुओं के कारण असमंजस में फसा नगर निकाय चुनाव थानाभवन का वोटर
वोटर हुआ परेशान रोज आ रहे नए चेहरे
*दलबदलुओं के कारण असमंजस में फसा नगर निकाय चुनाव थानाभवन का वोटर*
निजी संवाददाता देवेंद्र फौजी
नगर निकाय चुनाव में पिछड़ा आरक्षण पर टिकी निगाहों के बावजूद अदला बदली का खेल जारी है।सभी राजनेतिक पार्टियां भी विकल्प तैयार करने में जुटी हैं।वहीं नगर निकाय प्रतिनिधि के साथ साथ समर्थक भी अपना अपना माहौल बनाने में दिन रात मशगूल हैं।अब चूंकि वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव भी सिर पर है इसलिए कोई भी पार्टी जोखिम उठाने को तैयार नजर नहीं आ रही क्योंकि इन लोकल चुनावों का असर भी 2024 के लोकसभा चुनाव पर देखने को मिलेगा। वैसे भी पश्चिम उत्तर प्रदेश के शामली व मुज़फ्फरनगर जिलों में गठबंधन सत्तारूढ़ पार्टी पर भारी रही है क्योंकि इस क्षेत्र में सबसे बड़ी समस्या किसानों की मानी जा रही है,जिसमे बकाया गन्ना भुगतान,आवारा पशु,छोटे व्यापारियों पर छापेमारी,किसानों के बढ़ते बिजली बिल व छापेमारी को देखा जा रहा है और इन्ही मुद्दों को लेकर किसानों को भुनाने में गठबंधन कहीं ना कहीं सफल रहा है जिसका सीधा असर खतौली उपचुनाव में देखने को मिला था।भारत के सबसे लोकप्रिय मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चुनावी दौरे के बाद भी प्रत्याशी खतौली उपचुनाव हार गए थे जबकि उपचुनाव सत्तापक्ष का माना जाता रहा हैं।खतौली उस उपचुनाव को जनता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से जोड़कर नही देख रही है यह तो केवल लोकल लीडर्स का विरोधाभास और जनता में उनके प्रति आक्रोश था जिसे गठबंधन ने भुनाने में कामयाबी हासिल की।अब हाल ही में जो भगदड़ नगर पंचायत अध्यक्षों के प्रत्याशियों में देखने को मिल रही है उससे वोटरों में असमंजस की स्तिथि पैदा हो गई है।जहां कुछ लोगों के कांग्रेस,बसपा, सपा छोड़कर भाजपा में छलांग लगाने और कुछ का भाजपा,कांग्रेस, सपा छोड़कर बसपा में छलांग लगाने का दौर जारी है।वहीं भीम आर्मी भी थानाभवन में अपना एक अलग महत्व रखती है और भीम आर्मी खतौली उपचुनाव के दौरान गठबंधन के साथ आ गईं थी जिसका कोर वोटर गठबंधन के साथ आ गया था।कुल मिलाकर जो प्रत्याशियों की भगदड़ है उसे आम जनता केवल कुर्सी पाने से ही जोड़कर देख रही है।बहुजन समाज पार्टी लगातार उत्तर प्रदेश में पैर पसारने की कोशिश कर रही है जिसका अपना एक अलग ही वोटबैंक है।
इधर आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ता भी विकल्प के रूप में उभरने की अपनी संभावनाओं पर मनन कर रहे हैं और हो सकता है कि वह भी अपना प्रत्याशी मैदान में उतारे या फिर वे ऐसे किसी भी वृहत्तर गठबंधन में शामिल होकर अपने हार के दांव को जीत में बदलने का काम करें। वैसे भी अब आश्चर्यजनक रूप से दल बदलुओं में वह उत्साह नजर नहीं आ रहा है जो की पहले था क्योंकि स्थानीय समीकरणों को नजरंदाज बिल्कुल नही किया जा सकता।इसलिए किसी भी प्रत्याशी और पार्टी के लिए कह पाना अभी अतिशयोक्ति होगी।जो भी होगा।आरक्षण लागू होने के बाद ही स्पष्ट होगा।