धर्मसभा में संत प्रवचन,सज्जनों का सर्वत्र सत्कार और दुर्जनों को दुत्कार व तिरस्कार :आ विशुद्ध सागर

धर्मसभा में संत प्रवचन,सज्जनों का सर्वत्र सत्कार और दुर्जनों को दुत्कार व तिरस्कार :आ विशुद्ध सागर

संवाददाता आशीष चंद्रमौली

बडौत | जैन संत आचार्य विशुद्धसागर जी महराज ने ऋषभ सभागार में मंगल प्रवचन देते हुए कहा कि, घर की देहरी की सुंदरता देखकर घर में निवासरत व्यक्तियों का ज्ञान हो जाता है |भेष, भाषा और भोजन से व्यक्ति की होती है पहचान | तन का गौरापन ही श्रेष्ठ नहीं है | यदि मन मलिन है तो सुमन की सुगंध भी तभी श्रेष्ठ मानना ,जब अच्छी नहीं लगती जब मन सु - मन हो |

कहा कि,अमृत- अमृत है, गुड़ गुड़ है, मिश्री मिश्री है, मिट्टी मिट्टी है, विष विष है ,मल-मल है। सभी द्रव्य स्व स्वरूप में विद्यमान हैं।हमारे सोचने से द्रव्य में कोई परिवर्तन नहीं होता, न होगा, फिर भी हम व्यर्थ- विचार कर, आकुल व्याकुल होते रहते हैं।किसी के सोचने से, किसी का भला-बुरा नहीं होता है। हम स्वयं ही राग-द्वेष- मोह जनित परिणाम पर व्यथित होते रहते हैं, जबकि तीव्र- मंद परिणामों के अनुसार व्यक्ति कर्म बंध को प्राप्त होता है। अच्छे भाव शुभ रूप फल देते हैं और
अशुभ परिणाम कंडु फल देता है। इसलिए भावों से बंध, भावों से ही निर्बंध। 
     
मुनिश्री ने कहा कि, सज्जन हो या दुर्जन, दोनों ही जीवन जीते हैं, परन्तु सज्जन प्रशंसा-सत्कार को प्राप्त होता है वहीं, दुर्जन सर्वत्र तिरस्कार अविनय को प्राप्त होता है। जियो और जीने दो, यही मानवता का चिह्न है। सज्जन की सज्जनता सर्वत्र आदरणीय होती है।

सभा का संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया। सभा मे प्रवीण जैन, सुनील जैन, अतुल जैन, संदीप जैन, राजेश भारती, नरेंद्र जैन, वकील चंद जैन, अशोक जैन,वरदान जैन आदि श्रद्धालुओं के लिए व्यवस्था बनाने में जुटे रहे |