साधुओं के संसर्ग में आने से भले ही कोई साधु न बने ,संतोषी बनना सुनिश्चित : मुनि श्री विशुद्ध सागर

साधुओं के संसर्ग में आने से भले ही कोई साधु न बने ,संतोषी बनना सुनिश्चित : मुनि श्री विशुद्ध सागर

संवाददाता आशीष चंद्रमौली

बडौत। श्री 108 दिगंबर जैन मुनि विशुद्ध सागर जी महाराज ने नगर के श्री शांतिनाथ दिगंबर जैन मंदिर में आयोजित धर्म सभा में प्रवचन करते हुए कहा कि ,जैसी भविलव्यता होती है ,वैसी ही उसकी क्रिया होती है ।आंतरिक भावों के अनुसार व्यक्ति जीवन जीता है ।भावों की निर्मलता, वाणी की मधुरता, आचरण की पवित्रता, व्यक्तित्व को प्रभावी बनाते हैं।वहीं कशाय की मंदता, परोपकारी प्रवृत्ति, आत्म हितकारी दृष्टि, अध्ययनशीलता, विनम्रता, अनुशासन प्रियता,गुण ग्राहक भाव, निस्पृहता, उमंग उत्साह, दया ,करुणा और संयम आचरण, सर्वोत्थान के लिए आधार स्तंभ हैं। 
      प्रयोजन अनुसार प्रयोग करो

जैन मुनि ने आह्वान किया कि,सोचो, फिर कार्य करो। लोक के सर्व प्राणी स्व प्रयोजन के अनुसार वृत्ति करते हैं।व्यक्ति की उच्च सोच ही उच्चता प्रदान करती है। जिसकी सोच पवित्र होगी उसका भोजन भी पवित्र ही होगा। सज्जन पुरुष अपवित्र ,हिंसक, मांसाहारी भोजन नहीं करते हैं। धर्मात्मा के विचार वाणी और कार्य सर्व हितकारी होते हैं। वाणी वीणा बने, बांस न बने। वाणी की मधुरता मिश्री से अधिक मीठी होती है। 

  समता साधुता का प्रतीक 

कहा कि, नगर में साधु के आते ही आर्थिक, नैतिक, सामाजिक, मानसिक उन्नति होती है। साधुओं के संसर्ग से भले कोई साधु न बने, लेकिन वह संतोषी अवश्य बन जाता है। संतोष ही परम धन है। संतोषी मानव सुख शांति को प्राप्त करता है। हम साधु बन न सके, तो कोई बात नहीं, पर संतोषी अवश्य बनें ।संतोषी परम सुखी। 

   बाह्य वृत्ति आंतरिक भावों की परिचायक

जैन मुनि ने कहा कि,अशुभ भोजन, बुरे भाव, हिंसक वृत्ति, पुण्य क्षीणता की पहचान है। पुण्य आत्मा का भोजन ,भाव, भाषा एवं वेष पवित्र होते हैं।अशुभ आयु के बंधक अपवित्र भोजन ही करते हैं । कहा कि, जिसके वचन पवित्र नहीं ,वह कितना भी वास्तु सुधार ले, उसे शांति नहीं मिल सकती है। सुख शांति की चाह है ,तो अपने वचनों को संभालो।सभा का संचालन पं श्रेयांस जैन ने किया। सभा में सुरेंद्र जैन, अनिल जैन ,नवीन जैन दीपक जैन, सतीश जैन ,विनोद जैन एडवोकेट, प्रवीण जैन, सुनील जैन, सुभाष जैन, अशोक जैन अतुल जैन, आदि उपस्थित थे।

पर्यूषण पर्व हैं जन जन के आत्म कल्याण के पर्व,गृहस्थी जीवन में बढाएं संयम : राजेंद्र मुनि
 
दूसरी ओर नया बाजार जैन स्थानक में आयोजित प्रवचन सभा मे राजर्षि श्री राजेंद्र मुनि महाराज ने कहा कि, पर्यूषण पर्व आत्म कल्याण का पर्व है।पर्व के दूसरे दिन उन्होंने भगवान अरिष्टनेमी के काल में वासुदेव कृष्ण व उनकी माता देवकी के बारे में विस्तार से बताया । 

राजऋषि श्री राजेंद्र मुनि जी महाराज ने कहा कि ,ये पर्यूषण पर्व सांसारिक बंधनों से दूर रहकर अपने आत्म कल्याण करने के पर्व हैं। उन्होंने संयम और तप का विशेष महत्व बताया कि, साधु संयम और तप से अपनी आत्मा को भावित करता है । बताया कि, गृहस्थ में तप बहुत अधिक हो जाता है पर संयम की कमी बनी रहती है, जबकि साधुता में संयम की विशेषता बनी रहती है। वहां तप को संयम से कम महत्व दिया जाता है।

उन्होंने बताया कि, सहज तपस्या संयम है , जबकि कठोर संयम तपस्या है।ग्रहस्थ जीवन में तपस्या के महत्व पर प्रकाश डालते हुए अकबर बादशाह के जीवन की घटना सुनाई। कहा कि, हमारे पर्यूषण पूरी शालीनता गंभीरता के साथ चल रहे हैं ,हमें नित्य ज्ञान की प्राप्ति हो रही है।मुनि श्री ने सभी श्रावको को पर्यूषण में तप की प्रेरणा दी।सभा मे जयंत मुनि जी महाराज ने भी मंगल प्रवचन दिये। 
     
आज अठाई के दूसरे दिन स्थानक मे जैन श्रधालुओ की काफी भीड़ थी। इस दौरान दिल्ली, पंजाब, हरियाणा आदि अनेक स्थानो से जैन श्रद्धालु भी स्थानक मे पहुँचकर धर्म लाभ ले रहे हैं।