सभी प्रकार के अनर्थों की जड़ है राग, इससे बचना ही श्रेयस्कर: आ विशुद्ध सागर

सभी प्रकार के अनर्थों की जड़ है राग, इससे बचना ही श्रेयस्कर: आ विशुद्ध सागर

संवाददाता आशीष चंद्रमौली

बडौत |नगर के ऋषभ सभागार में दिगंबर जैन समाज समिति द्वारा आयोजित धर्म सभा में मंगल प्रवचन करते हुए महान जैन संत आचार्य विशुद्ध सागर ने कहा कि, जो हमारे राग की पुष्टि करता है, वह हमें अच्छा लगता है और जिससे हमारे राग की पुष्टि नहीं होती है, वह प्रिय नहीं लगता , लेकिन वस्तु तो जैसी है ,वैसी ही है। न वह सुन्दर है, न वह असुन्दर है। जो हमें प्रिय लगता है उसके दोष भी दृष्टिगोचर नहीं होते और जो अप्रिय लगे उसके गुण रूप दिखाई नहीं देते हैं। 

       

कहा कि,सम्राट वही श्रेष्ठ है, जो पक्षपात से शून्य हो। अयोग्य, अनुशासनहीन, सरलता-विहीन क्रूर, क्रोधी, अकुशल व्यक्ति का शासन नहीं चल पाता है। पद के योग्य, अनुशासनप्रिय, कुशल, दूरदृष्टा, अनुभवी, बलवान, नीतिज्ञ मनुष्य ही श्रेष्ठ राज्य का अधिकारी होता है। बताया कि, सरलता मानव जीवन का आभूषण है। क्षमा आनन्द की जननी है। विनय सुख का आधार तथा सुख का द्वार है , जबकि धर्म परम सुख का द्वार है। राग आग है, वीतराग भाव शीतल नीर है। राग की एक कणिका जीवन को अशांत कर देती है। दुनिया में जितने भी अनर्थ हुए हैं या हो रहे हैं और भविष्य में होंगे, वह सभी रागियों के कारण ही होंगे। राग के वशीभूत मानव अनर्थ- पर- अनर्थ करता है। अनर्थों की मूल जड़ ही राग है।।सभा मे मुनि श्री निर्ग्रंथ सागर जी महाराज ने भी मंगल प्रवचन दिए। 

      

सभा का संचालन अतुल जैन ने किया।दीप प्रज्वलन प्रवीण जैन, धनपाल जैन, सुनील जैन, सुखमाल जैन द्वारा किया गया। पाद प्रक्षालन का सौभाग्य दिगंबर जैन युवा मंच के सदस्य अंकुर जैन, अमित जैन,नीरज जैन,नितिन जैन, मुकुल जैन को प्राप्त हुआ।