नाग पंचमी पर बहनों की बनाई कपड़े की गुड़िया को पीटकर मनाया त्योहार।
रमेश बाजपेई
रायबरेली। जनपद में नाग पंचमी के साथ-साथ गुड़िया का भी पर्व सड़कों पर मेले के साथ दिखाई पड़ा बीच सड़क भाइयों ने लाठी से पीटी गुड़िया.नाग पंचमी पर नाग पूजा के साथ-साथ गुड़िया का त्योहार भी उत्तर प्रदेश में धूमधाम से मनाया जा रहा है. गुड़िया के पर्व पर कन्याएं कपड़े की छोटी-छोटी गुड़िया बनाकर चौराहों और खुले मैदान में डालती हैं. इसके बाद उनके भाई डंडों से उन गुड़ियों की खूब पिटाई करते हैं. जिसका समापन गांव के किसी तालाब पर होता है. वहीं, शादीशुदा बहनों की ससुराल में इस अवसर पर कुछ उपहार, खाद्यान्न व मिष्ठान भेजने की भी परंपरा है. नाग पंचमी के पीछे की पौराणिक कथा के अनुसार, जनमेजय अर्जुन के पौत्र राजा परीक्षित के पुत्र थे, जब जनमेजय ने पिता की मौत की वजहसर्पदंश जाना तो उसने बदला लेने के लिए सर्पसत्र नामक यज्ञ का आयोजन किया. नागों की रक्षा के लिए यज्ञ को ऋषि आस्तिक मुनि ने श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन रोक दिया और नागों की रक्षा की. इस कारण तक्षक नाग के बचने से नागों का वंश बच गया. आग के ताप से नाग को बचाने के लिए ऋषि ने उन पर कच्चा दूध डाल दिया था, तभी से नागपंचमी मनाई जाने लगी. वहीं नाग देवता को दूध चढ़ाने की परंपरा शुरू हुई.गुड़िया का पर्व बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है. कहीं-कहीं तो दंगल का आयोजन भी किया जाता है. गांव के बाल पहलवान कुश्ती करते हैं, जीतने वाले को इनाम भी दिया जाता है. ढोलक की ताल पर कुश्ती होती है. आसपास के लोग मोहल्ला के साथ तालियां बजाते हैं. इतना ही नहीं इस त्योहार को मनाने के लिए सावन के झूले भी आज के दिन गांव में पेड़ में डाले जाते हैं और लोग इसका लुत्फ उठाने आते हैं. यह परंपरा की झलक ग्रामीण इलाकों में भी देखने को मिलती है.