श्रीमद् भागवत महापुराण के पुण्य का उदय अनुबंध चतुष्टय से होना सुनिश्चित :स्वामी सत्य देव आश्रम
संवाददाता आशीष चंद्रमौलि
बडौत। श्री सनातन धर्म प्रचारिणी महासभा के तत्वाधान में महाराजा अग्रसेन भवन बड़ौत में चातुर्मास कर रहे दंडी स्वामी सत्यदेव आश्रम जी महाराज ने स्पष्ट किया कि, श्रीमद्भागवत के लिए अनुबंध चतुष्टय यानि पहला अधिकारी, दूसरा विषय, तीसरा संबंध और चौथे रूप में उसका प्रयोजन होना भी जरूरी है।
दंडी स्वामी ने बताया जैसे श्रीमद् भागवत के अधिकारी महाराज परीक्षित हैं , उन्हें जब शाप का पता चला, तो वह परेशान हो गए कि, मुझे मोक्ष कैसे प्राप्त होगा।तब मोक्ष प्राप्ति हेतु उद्धार के लिए श्रीमद्भागवत महापुराण को सुनने के वह अधिकारी बने । दूसरे क्रम में विषय है,जो ईश्वर और जीव को बताता है। चतुष्टय का तीसरा क्रम है संबंध, जो जीव का परमात्मा से क्या संबंध होता है इसको बताता है तथा चौथा है प्रयोजन। दंडी स्वामी ने कहा ,बिना प्रयोजन कोई कार्य नहीं होता । प्रत्येक कार्य के पीछे कोई ना कोई प्रयोजन अवश्य होता है, श्रीमद्भागवत महापुराण कथा के उदय के पीछे भी महाराज परीक्षित को मोक्ष प्रदान करना तो था ही ,साथ में कलयुग में मनुष्य के बस में उस प्रकार से भक्ति करना संभव नहीं रहा ,तो उसका उद्धार कैसे हो ,इसके लिए श्रीमद्भागवत महापुराण का उदय हुआ।श्रीमद्भागवत का श्रवण करके यदि मनुष्य उसमें दी हुई बातों को धारण करता है, तो वह मोक्ष प्राप्त कर सकता है।
महासभा के सचिव डॉ दीपक गौतम ने बताया ,आज का पुराण पूजन व आरती डॉ रमेश वशिष्ठ डॉ प्रभात वशिष्ठ होम्योपैथ के परिवार द्वारा की गई । इस अवसर पर डॉ अखिलेश शर्मा,कृष्णपाल ,राजेंद्र ,देवदत्त ,दिनेश,महेश,गुड्डी ,वीना ,पूनम ,सुनीता,रामकुमार, धर्म प्रकाश वर्मा,ममता पं महीपाल कौशिक आदि श्रद्धालु भी सहयोगी रहे।