पवित्र भावों से ही होते हैं सद्गुरुओं के दर्शन तथा होता है अशुभ कर्मों का क्षय : जैन मुनि विशुद्ध सागर
संवाददाता आशीष चंद्रमौली
बडौत। दिगम्बराचार्य जैनसंत विशुद्धसागर जी महाराज ने त्रि दिवसीय गोष्ठी के अंतिम दिन, ऋषभ सभागार मे धर्मसभा में कहा कि, पवित्र भावों से ही होते हैं सद्गुरुओं के दर्शन तथा जिनके प्रभाव से कार्य की सिद्धि होती है आत्म-अल्लाहात होता है तथा अशुभ कर्मों का क्षय होता है।कहा कि, प्रभु के दर्शनमात्र से पाप का क्षय होता है तथा पुण्य के कोष भरते हैं। साथ ही पुण्य के उदय में संसार के सर्व-सुखद साधन प्राप्त होते हैं और पाप के उदय में सर्व नाश होता है।ऐसे में पुण्य चाहिए या पाप, यह निर्णय हमें स्वयं करना है, लेकिन यह सत्य है कि,पुण्यात्मा ही सर्व सुखों का भोक्ता होता है।
जैन मुनि ने आगाह किया कि,व्यक्ति को पद के अनुकूल अपनी वृत्ति करना चाहिए।उतावलापन व्यक्ति के व्यक्तित्व को धूमिल कर देता है, जबकि गंभीरता से व्यक्तित्व को ऊँचाई और प्रभावक शक्ति मिलती है।कहा कि, जिसका कृतित्व श्रेष्ठ है, उसे पुरुषार्थ पूर्वक अपने व्यक्तित्व को प्रभावी बनाना चाहिए। साथ ही अपने उन पूर्व परिणामों पर विचार करो, जिन परिणामों से आपको सुन्दर रूप, उच्च कुल, प्रबल पुण्य एवं मनुष्य पर्याय प्राप्त हुई है। जो प्रभु के दर्शन करता है, गुरुओं की सेवा करता है, वही इस धरा पर प्रबल पुण्यात्मा है।इसके विपरीत जिसके विचार हीन हों, गुरुओं के प्रति द्वेष-बुद्धि हो, गुणियों के गुणों को कहने में उद्यत न हो, वही निर्धन है।
जैन संत ने उदाहरण देकर समझाया कि, चक्की का चाहे नीचे का पाटा हो, या ऊपर का पाटा हो, दोनों ही पाटे काम के हैं। ऐसे ही चाहे निश्चय हो या व्यवहार हो, दोनों ही नय आवश्यक हैं। अपनी-अपनी जगह सबका अपना , महत्त्व होता है।गोष्ठी का संचालन वाचस्पति पं श्रेयांस जैन ने किया।गोष्ठी मे प्रो फूलचंद प्रेमी, प्रो अशोक कुमार, प्रो अनेकांत जैन, प्रो श्रेयांस सिंघाई, डॉ वीर सागर, डॉ शीतल चंद्र आदि मौजूद रहे।दिगंबर जैन समाज समिति के अध्यक्ष प्रवीण जैन और भारतीय जैन मिलन के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मनोज जैन द्वारा सभी विद्वानों का माला पहनाकर सम्मान किया।
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