भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का योगदान विषय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिचर्चा का हुआ आयोजन

भारतीय संस्कृति के विकास में जैन धर्म का योगदान विषय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर परिचर्चा का हुआ आयोजन

महेंद्र राज  (प्रभारी मण़्डल)

सं.सू - नीरज जैन. भारतीय संस्कृति के विकास मे जैन धर्म के योगदान विषय पर अंतर्राष्ट्रीय स्तर में एक वेबीनार का आयोजन बीते शनिवार जूम मीटिंग पर किया गया।कार्यक्रम मुख्य अतिथि इसरो के वरिष्ठ वैज्ञानिक और जे.ए.एस अकादमी अहमदाबाद के निदेशक डा.नरेंद्र भंडारी के निर्देशन में तथा सुःप्रसिद्ध लेखिका डा.प्रभाकिरण जैन की अध्यक्षता मे,जे.ए.एस की महा.सचिव डा.पूर्वी दवे के सहयोग से संयोजक शैलेंद्र कुमार जैन के संचालन मे संपन्न हुआ।इस बैठक मे हुई चर्चा का मुख्य उद्देश्य भारतीय इतिहास पुरातात्व और कला के विकास में आदिकाल से जैन धर्म के योगदान,विगत वर्षों में हुए अनेक शोध कार्यों के आलोक में भारतीय सांस्कृति के विकास में जैन धर्म के योगदान को रेखांकित कर तथ्य परक रूप से नव मूल्यांकन करना और उसको राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय स्तर के जोर्नलों में प्रकाशित करना तथा भारतीय इतिहास के निर्माण ने उसकी उपयोगिता और उपादेयता को प्रदर्शित तथा स्थापित करना रहा।वरिष्ठ विद्वान डा.नरेंद्र जैन ने मंगलाचरण कर चर्चा का शुभारंभ किया।परिचर्चा में
जयपुर से जुडे वरिष्ठ विद्वान डा.पी.सी जैन ने कहा कि उन्होंने जैन दर्शन पर 250 से अधिक पी.एच.डी कराई तथा इस विषय पर

सरकार के सहयोग से ऐसे कई प्रोजेक्टों पर शोध किए हैं जिनको सब के सहयोग से आगे बढाने के कार्य और हर संभव मदद करेंगे।लखनऊ के डा.ब्रजेश रावत ने अपनी पुस्तक में सिन्धु सभ्यता और वैदिक उल्लेखों के माध्यम से किए शोध कार्य पर प्रकाश डालते हुऐ अनेक नग्न मूर्तियों का साम्य ऐतिहासिक कालीन मूर्तियो से करते हुऐ कहा कि भारत में चलने वाली योग वादी एवं भोग वादी परंपराओं मे से ये मूर्तियाँ योग वादी परंपरा का प्रतिनिधित्व करती हैं।आगरा के डा.भानु प्रताप ने फतेहपुर सीकरी पर प्रकाशित पुस्तक के माध्यम से बताया कि अकबर से 500 वर्ष

पूर्व यह क्षेत्र जैन धर्म का एक बडा केंद्र था और वहीं पर एक जैन नगर जो कि सैकरिक्य जैनाचार्यों की बस्ती कहलाती थी।संवत् 1010 मे मिली देवी जैन सरस्वती की प्रतिमा देश की सुंदरतम्

प्रतिमाओं मे से एक है।ए.एस.आई के पूर्व अधिकारी डा.मैनुअल जोसेफ ने बताया कि उन्होंने अनेकों लेखों में यह कहा है कि सिन्धु घाटी में मिली दिगम्बर  मूर्तियाँ और प्रतीक चिह्न जैन परंपरा से अधिक साम्य रखते हैं और लोगों को जो दिख रहा है उसे कहने में शंकोच नहीं करना चाहिए।निर्मल जैन ने कहा कि महावीर,गौतम बुद्ध,मौर्य साम्राज्य,खारवेल आदि से जुडी कई प्रमुख धटनाओं और उनकी तिथि निर्धारित करने के विषय पर और अधिक शोध होने चाहिए और वो अभी इस पर कार्य कर रहे हैं और इसी क्रम में उन्होंने स्व.निर्मल सेठी के साथ कई देशों की यात्रा कर प्रमुख तथ्यो को संग्रहित कर एक पुस्तक प्रकाशित की है।आई.ए जे.एस के डा.श्रीनेत्र पांडे ने कहा कि मूर्तियों पर लांछन लगभग दो हजार साल से मिलते आ रहे हैं।प्राप्त दिगंबर मूर्तियों और प्रतीक चिन्हों के आधार पर उन पर और अधिक शोध कर उनके स्वरूप को सिद्ध किया जाना चाहिए।परिचर्चा में शामिल सभी विद्वानो को सुनने के बाद डा.नरेंद्र भण्डारी ने सभी का आभार व सराहना करते हुऐ कहा कि अब हमें अग्रिम कार्यवाही पर विचार विमर्श कर एक कार्य योजना तैयार कर उसे प्रारंभ करना है।अंत में अध्यक्षीय वक्तव्य में डा. प्रभा किरण जैन ने कहा निः संदेह सभी विद्वतजनों का इतिहास पुरातात्व मे महत्व पूर्ण योगदान है पर पुस्तकों की उपलब्धता सीमित पाठकों तक होने के कारण़ पर प्रचार- प्रसार बहुत कम है।अतःआज के दौर के अनुसार हमें डाक्यूमेंट्री वीडियोज बना कर शोसल मीडिया पर उनका प्रचार-प्रसार करना चाहिये तथा शोध पत्रों का संग्रह कर विशेषांक के रुप मे भी प्रकाशित करना चाहिए।

शुगल चंद्र,डा.नीलम जैन, डा.नवनीत जैन,डा.द्रष्टि राठी,यू.के.जैन आदि ने वार्ता में जुड़ कर वेबीनार को सफल बनया।अंत में कार्यक्रम संयोजक शैलेंद्र जैन अध्यक्ष (श्री आदिनाथ मेमोरियल ट्रस्ट)ने सभी का आभार प्रकट किया।